Wednesday 4 May 2011

बसेरा न होता



जो महताब, बादल ने घेरा न होता 
मेरे  आशियाँ  में  अँधेरा  न   होता 

अगर मेरी छत से ये सूरज गुज़रता 
तो ग़मगीन  इतना  सवेरा  न  होता 

बरसता जो मेरे भी आँगन में सावन 
तो काँटों  का  फिर ये बसेरा न होता 

अगर  तुम  न  होते  मेरी जिंदगी में 
मेरे  पास  कुछ  भी तो  मेरा न होता 

अगर  तुम  कहीं  साथ  मेरा निभाते 
जो होता भी  गम  तो  घनेरा न होता 

ये  जीवन  की  रेखाएं  यूं  न बदलतीं 
जो   छूटा  कहीं  साथ  तेरा  न  होता 


चाँद ज़रा सा


क्यूँ  मुझको  तड़पाता  है  ये  चाँद   ज़रा   सा
दिल   में  आग  लगाता  है  ये  चाँद  ज़रा  सा 

मैं  तेरी  ही   यादों   में   खो   जाती   हूँ   बस 
जब  मुझको  दिख  जाता  है  ये चाँद ज़रा सा 

मन चकोर पर मत पूछो क्या- क्या गुज़रे है 
जब  घट  कर  रह  जाता  है ये  चाँद ज़रा सा 

साथ   समय   के   रूप  बदलना  ही पड़ता है 
हम  सबको  सिखलाता  है  ये  चाँद ज़रा सा 

बड़े-बड़ों  को   देखा   दोष   छिपाते    हमने 
अपना  दाग  दिखाता  है  ये  चाँद  ज़रा  सा 

दीप  दिवाली  में  जगमग  जगमग  करते  हैं
औ र  कहीं   खो   जाता   है  ये   चाँद ज़रा सा 

दिल से दिल मिल  जाते, शिकवे मिट जाते हैं 
ईद में  जब  दिख  जाता  है  ये  चाँद  ज़रा सा 

'रेखा' के दिल को मिलता आनंद अमित, जब
बन  किताब  छप  जाता  है  ये  चाँद  ज़रा सा 



Tuesday 3 May 2011

आंसू



दिल में लगी है जो आग 
उसका धुआं है ये आंसू 
सुबह और शाम जो की है 
वो दुआ हैं ये आंसू 
दफ्न किये जिंदा अरमानो के कब्र 
पर चदे फूल हैं ये आंसू 
भुला न पाए जो उम्रभर 
वो भूल हैं ये आंसू
इनसे न तू नज़रें चुरा 
तेरी बेरुखी के पहचान हैं ये आंसू 
दोस्त होकर दुश्मन की तरह चाहने वाले 
तेरी इस चाहत के कद्रदान हैं ये आंसू 



तुमने



शीशे के टूटने ने तुम्हे चौंका तो दिया 
दिल हमारा टूटा तुम्हे सुनाई न दिया 
सागर की मौजों ने बढ़कर चूम लिए तुम्हारे कदम 
हमको तो नज़रों से भी अपना दामन छूने न दिया 
फूंस पर लगी आग को ही तामाम उम्र बुझाते रहे तुम 
सुलगते रहे हम तुम्हारी रह में, धुआं भी दिखाई न दिया 
चाह थी प्यार की खुशबू से सांसों को महकाने की
तुमने तो बहारों में भी फूल कोई खिलने  न दिया
तुम्हे तो हमारे जीते रहने पर मिली न कोई खुशी 
ज़हर पीना चाह तो एक ही बार में मरने न दिया 


होश


क्या कहें तीर-ए-नज़र के असर को 
कमान से छूटा भी नहीं, थामे पड़े हैं हम जिगर को 
होश मेरे उड़ गए उनके आने की खबर सुनकर 
अब जाम पे जाम भरके खाली न कर सागर को 
अभी तो तेरे पर्दानशीं रुख की एक झलक देखी है ऐ जिंदगी !
जन्म - जन्म तक मुर्दा ही पैदा होंगे जो देख लिया 
तेरे बेनकाब रुख-ऐ-असर को 



Monday 2 May 2011

तेरे नाम के साथ



कुछ सुनना नहीं रहा बाकी
सागर की खनक सुनकर साक़ी
प्यास बढ़ाने को मैं जो हाथ बढाऊँ 
आँखों से एक बार मुस्करा देना साकी 
फिर पीना न रहे बाक़ी, पिलाना न रहे बाक़ी 
अंधेरों में गुम था मैं 
जो तेरे नाम के साथ जुड़कर हुआ बदनाम 
उजाले की तलाश न रही बाक़ी
मौसम खूबसूरत हैं बेखुदी का आलम है 
ऐसे में जाओ, तुम मुझे छोड़ कर जाओ 
मेरा होश में आना है अभी बाक़ी 
आ गया जो होश, जा न सकोगे साक़ी 



जिंदगी



ज़िन्दगी तेरी हर अदा हमें छल गयी 
खुशी समझ जो पकड़ना चाहा
तो बंद मुट्ठी से रेत सी फिसल गयी 
जो गम समझ कर 
दिल में छुपा लेना चाहा 
तो आँख से आंसूं बन कर ढलक गयी 
जो इंतजार समझ कर तुझे 
सब्र से गुज़ारना चाहा 
तो आहट बन कर बिखर गयी 
जब सौगात समझ कर देना चाहा 
तो पालतू चौपाये सी खूंटे से बंध गयी
जब प्यार समझ कर पाना चाहा 
तो बेवफा माशूक की तरह तेवर बदल गयी