जो महताब, बादल ने घेरा न होता
मेरे आशियाँ में अँधेरा न होता
अगर मेरी छत से ये सूरज गुज़रता
तो ग़मगीन इतना सवेरा न होता
बरसता जो मेरे भी आँगन में सावन
तो काँटों का फिर ये बसेरा न होता
अगर तुम न होते मेरी जिंदगी में
मेरे पास कुछ भी तो मेरा न होता
अगर तुम कहीं साथ मेरा निभाते
जो होता भी गम तो घनेरा न होता
ये जीवन की रेखाएं यूं न बदलतीं
जो छूटा कहीं साथ तेरा न होता